भगत सिंह एक प्रसिद्ध भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष किया। उनका जन्म 27 सितंबर 1907 को पंजाब के जिले लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके पिता का नाम किशन सिंह था और माता का नाम वीरमती कौर था। उनका पूरा नाम शहीद-ए-आजम सरदार भगत सिंह था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अपनी जान की आहुति दी और उनकी शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गई।
भगत सिंह ने Nation राज के अत्याचारों और भारतीयों की दुर्दशा को देखकर स्वतंत्रता और समाज के उत्थान को अपना उद्देश्य बना लिया। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपने साहसिक कदमों से देशवासियों में अपार उत्साह जगाया। जलियांवाला बाग की त्रासदी को नकारते हुए, अपने साथियों के साथ मिलकर विद्रोह की योजना बनाई। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के साथ जुलूस के दौरान गिरफ्तार हुए और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। उनकी शौर्य और वीरता को आज भी याद किया जाता है, और उन्हें आजादी के महान शहीदों में शामिल किया जाता है।
27 सितंबर, 1907; दिन शनिवार; पंजाब के लायलपुर जिले का बंगा गाँव; प्रात: लगभग 9 बजे। बंद कमरे में दर्द से छटपटाती विद्यावती का क्रंदन गूंज रहा था। पास बैठी सास जयकौर माथे को सहलाते हुए उन्हें धीरज बँधा रही थीं। दाई तेजी से अपने काम में व्यस्त थी। कमरे के बाहर सरदार अर्जुन सिंह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर टहल रहे थे, किसी शुभ समाचार की प्रतीक्षा करते हुए। बुदबुदाते होंठों से ‘वाहेगुरु’ का जाप करते हुए वे कभी-कभी बंद दरवाजे की ओर देखते। तभी नवजात शिशु की किलकारियों से आँगन गूंज उठा। अर्जुन सिंह ने शांति की साँस ली और हाथ उठाकर वाहेगुरु का शुक्रिया अदा किया।
थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला और दाई ने खुशखबरी दी, “बधाई हो, सरदार साहब! पोता हुआ है।” सूर्य की तप्त किरणों से चेहरा जगमगा उठा; बूढ़ीियों में जैसे जवानी की लहर दौड़ गई। सरदार अर्जुन सिंह उस समय में लौट आए, जब उनके घर किशन सिंह का जन्म हुआ था। वे हँसते हुए दाई से बोले, “यह मेरा पोता नहीं बल्कि मेरा पुनर्जन्म है। मुझे विश्वास है कि मेरा यह जीवन पूरी तरह से देशसेवा में समर्पित होगा।” कुछ ही देर में बधाई देनेवालों से पूरा आँगन भर गया।
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